राहुल गाँधी की भारत जोड़ों यात्रा और कांग्रेस पार्टी का नया अध्यक्ष !
कांग्रेस पार्टी , भारत देश की सबसे पुरानी पार्टी लेकिन इसके बारे में जितना जाना उतना कम है। देश में कभी वर्चस्व रखने वाली यह पार्टी आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत है। हम इसको भले ही नकार दें लेकिन सच्चाई से मुँह नहीं मोड़ सकते। आज कांग्रेस पार्टी अपने तथाकथित नए अध्यक्ष को पाने को लालायित है। पिछले कुछ वर्षों से यह लगातार अपने अध्यक्ष पद का चुनाव कर ही रही है। सब दबे स्वर में राहुल गाँधी का भले ही विरोध करे लेकिन किसी की हिम्मत नहीं है की सच को मुखर स्वर से स्वीकार करें। क्योंकि कहीं न कहीं कांग्रेस कार्यकर्ताओं के दिमाग में यह बात बैठा दी गई है कि गाँधी परिवार के बिना कांग्रेस का अस्तित्व ही नहीं है।
आज़ादी का समय हो या आज का दिन है गाँधी परिवार का ही प्रमुख यहाँ पे मुखिया बना रहना चाहता है। राहुल गाँधी कितना यात्रा कर ले दिमाग लगा ले लेकिन जनता मानने को तैयार ही नहीं है। कांग्रेस असल में गाँधी परिवार की पर्सनल प्रॉपर्टी बन के रह गई है। जिसकी दुर्दशा देखकर समझ में आता है कि शायद बिज़नेस अच्छा नहीं चल रहा। और अलग अलग स्ट्रैटजीज बनाकर उसके प्रयोग किए जाते रहे हैं। किंतु यह प्रयोग दिनोंदिन की दुर्दशा बढ़ाने का ही काम कर रहा है।
कुछ भी कह लो, कुछ भी सुन लो लेकिन गाँधी परिवार ही रहेगा मुखिया? जिसने भी अपनी आवाज मुखर की वही कांग्रेस पार्टी से भी बाहर निकाल दिया गया है। भले ही वह कितना कद्दावर नेता है। लेकिन यहाँ चाटुकारों की पार्टी में किसी की कोई अहमियत नहीं है। जब तक कि उस पर गाँधी परिवार का हाथ नहीं।
भारत जोड़ो यात्रा
देखते है भारत जोड़ो यात्रा का क्या असर होता है ? लेकिन जनता कहीं न कहीं मान चुकी है कि कांग्रेस में कोई भी आमूलचूल परिवर्तन नहीं हो सकता। कांग्रेस पार्टी कितना भी कपड़े बदल लें लेकिन गाँधी परिवार के बाहर नहीं जाने वाला।
अगर हम गाँधी परिवार की बात कहें जिसका वजूद गाँधी नाम के सर नेम से है। जिसे भारत देश के पितामह कहे जाने वाले “महात्मा गाँधी” की खैरात से मिले नाम का दुरुपयोग भी क्यों न हो ? ये कहावत है किसी झूठ को भी अगर 100 बार कहोगे तो वह सच। नहीं माना जाने लगेगा। यही हाल जवाहर लाल नेहरू की खानदान का भी है। आज पूरा देश इनको गाँधी परिवार के ही नाम से जानता है और यह गाँधी सरनेम का दुरुपयोग ही कर रहे हैं।
आज कल कांग्रेस पार्टी राहुल गाँधी के नेतृत्व में भारत जोड़ो में व्यस्त हैं। पुराने अनुभवों से ही समझ में आता है की यात्रा केवल मीडिया की चकाचौंध में ही गुम हो जाएगी। उसके बाद फिर कांग्रेस पार्टी कोई नया शिफूगा लेके प्रधानमंत्री मोदी जी के पीछे पड़ जाएगी और हर प्रकार से दबाव बनाने की कोशिश करेगी कि वह प्रधानमंत्री का पद छोड़ दें और कांग्रेस को खैरात में प्रधानमंत्री का पद दे दे। ये वही बात है की खुद मेहनत ना करना और दूसरे सिर पर ठीकरा फोड़ना। जनता भी कहीं न कहीं इन सब चीजों से ऊब चुकी है। इसका असर हम सभी पुराने चुनावों में देख सकते हैं। शाहे वो घटता जन आधार भी इन तथाकथित नेताओं को सच्चाई के धरातल पर आने के लिए मजबूर नहीं कर पा रहा।
कांग्रेस पार्टी का नया अध्यक्ष
उनकी अपनी कोई विचारधारा देखने को नहीं मिलती। यह केवल पुरानी बातों को लेकर चुनाव में आगे आते हैं। हम देखते हैं की साल दर साल राहुल गाँधी चुनाव हारने के बाद जनता के दबाव में नए अध्यक्ष पद के लिए नया चेहरा लाने की बात करते है किंतु हर बार वही ढाक के तीन पात। शायद यही कारण है देश की सबसे पुरानी पार्टी अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत नजर आ रही है। कई छोटी छोटी पार्टियां भी उसको पीछे छोड़ चुकी है और अनेक राज्यों में गठबंधन की सरकार के लिए मजबूर है।
कहते हैं एक राजा को राज करने के लियेअच्छे मंत्रियों के जरूरत पड़ती है। जो कहावत है “निंदक नियरे राखिये आंगन कुटी छवाय”। अर्थात अपने निंदकों को भी पास में ही रखना चाहिए । उससे आपको अपनी गलतियाँ पता चलती रहती है। लेकिन यह तो राहुल गाँधी के लिए बेमानी ही प्रतीत होता है। क्योंकि अगर किसी ने भी आलाकमान को गलत कहा। तो उसको पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। आज पार्टी को निश्चित रूप से आत्ममुग्ध अवस्था से बाहर आना चाहिए और आंख खोलके जनता से जुड़ने का प्रयास करना चाहिए। ताकि जनता को भी कांग्रेस पार्टी एक अच्छा राजनीतिक विकल्प नजर आए। यह आने वाली पीढ़ियों के लिए अच्छा होगा कि कांग्रेस डिस्ट्रक्शन से कंस्ट्रक्शन की ओर बढ़ें। अब यह आने वाला समय ही बताएगा कि राहुल गाँधी और गाँधी परिवार इससे क्या सीख लेता है ?